परिक्रमा पथ में वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदि को नहीं छेड़ना, साधु-संतों आदि का अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्य का वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसा से बचना, परनिन्दा, पर चर्चा और कलेस से सदा बचना चाहिए
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बाद में इस दृष्टिकोण में विस्तार करके इसे आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान की अवधारणाओं से जोड़ कर एक व्यवस्था तैयार की गयी जो साइकोमेडिकलिज्म (Physiomedicalism) कहलाया. एक अन्य समूह, इक्लेक्टिक्स ने बाद में रूढ़िवादी चिकित्सा पेशेवरों की एक शाखा, जो तत्कालीन पारा या रक्तस्राव होनेवाले चिकित्सा उपचार का वर्जन करना चाहते थे, से बचने के लिए अपने अनुशीलन में जड़ी-बूटियों से तैयार औषधि का इस्तेमाल करना शुरू किया.